मौसम पूर्वानुमान ( वैधता: दिनांक 02 दिसंबर, 2023 से 06 दिसंबर, 2023 तक)
भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी मौसम पूर्वानुमान के अनुसार आगामी 5 दिनों में फतेहपुर जिले में दिनांक 05 से 06 दिसंबर के बीच में मध्यम से घने बादल छाए रहने की संभावना रहेगी। लेकिन इसके कारण बारिश की संभावना नहीं रहेगी। बाकि दिनों में मौसम साफ़ बने रहने की संभावना है।अधिकतम तापमान 27.0 से 29.0 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहेगा जबकि न्यूनतम तापमान 12.0 से 15.0 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहेगा। हवा की दिशा अधिकतर उत्तर-पूर्वी होगी और हवा की गति सामान्य बने रहने की संभावना हैं।*
*किसानों को यह सलाह दी जाती है कि रबी फसलों की बुआई के लिए अनुकूल है। रबी मौसम में बोई जाने वाली फसलें जैसे चना, मटर, मसूर, सरसों और अलसी आदि को बीज उपचार के बाद ही बोना चाहिए। कीटनाशकों, शाकनाशियों और खरपतवारनाशकों के लिए, उपकरणों को धोने के लिए केवल साफ पानी का उपयोग करें और हवा की विपरीत दिशा में खड़े होकर कीटनाशकों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों का छिड़काव न करें। छिड़काव शाम को करना चाहिए; यदि संभव हो तो छिड़काव के बाद, खाने से पहले और कपड़े धोने के बाद हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोना चाहिए।*
*फ़सल संबंधित सलाह*
•मौसम के अनुसार सिंचित अवस्था में गेहूं की बुआई के लिए तापमान अनुकूल है, इसलिए गेहूं की बुआई 10 नवंबर से शुरू कर देनी चाहिए. गेहूं एवं क्षेत्रीय प्रजातियों पी बी डब्लू-723, HPBW-01, DBW-39, K.-9107, K.-1006, K.-402, K.-607, DBW-90, WB-02, NW-5054, एच.डी.-3043, यू.पी.-2382, एच.यू. W-468, PBW-443, HD 2967 आदि की बुआई हेतु खेत तैयार करें। कटाव वाली भूमि के लिए अनुशंसित प्रजातियाँ:- KRL-210, KRL-213, K.-1317 आदि किसी भी प्रजाति की बुआई हेतु खाद एवं बीज की व्यवस्था करनी चाहिए।
•जब तोरिया में 75% फलियाँ सुनहरी दिखाई दें तब फसल की कटाई करें। देर से बोई गई तोरिया की फसल फूल से फली बनने की अवस्था में चल रही है, जो नमी की कमी के प्रति संवेदनशील है, इसलिए हल्की सिंचाई करके उचित नमी बनाए रखें।
•सरसों की फसल की बुआई के 15-20 दिन के अन्दर पौधे से पौधे की दूरी 10-20 सेंटीमीटर के अन्दर रखकर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। सरसों की फसल में पहली सिंचाई बुआई के 30-35 दिन बाद तथा ओट आने पर 132 किग्रा/हेक्टेयर की दर से यूरिया की टॉपड्रेसिंग करनी चाहिए। सरसों की फसल में आरा मक्खी एवं बालयुक्त कैटरपिलर कीट का प्रकोप होने की संभावना रहती है, अत: इसकी रोकथाम के लिए इमैक्टिन बेंजोएट 5% एसजी 200 ग्राम/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
• मटर की फसल में निराई-गुड़ाई बुआई के 20-25 दिन बाद करनी चाहिए।
•चने की फसल में कटवर्म (कटुआ कीट) का प्रकोप होने की संभावना रहती है, इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफोस 50% EC + स्पर्मेथ्रिन 5% EC 2.0 लीटर/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। चने की फसल में निराई-गुड़ाई बुआई के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए। चने की किसी भी किस्म की बुआई के लिए फसल अनुशंसित प्रजातियाँ- आवारोधी, पूसा 256, पूसा-362, के.डब्लू.आर-108, के-850, के.डी.जी.-1168 आदि। छोटे दाने वाले बीज 75-80 किग्रा/हेक्टेयर। बड़े दाने वाले बीज के लिए 90-100 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर की दर से बुआई करें।
•समय पर बोई गई सब्जियों की आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई करनी चाहिए। लहसुन, मूली, मेथी, धनिया, पालक एवं सोया आदि की बुआई शीघ्र पूरी करें। पत्तागोभी एवं फूलगोभी की तैयार पौध की रोपाई करें। यदि सब्जी की फसलों में फल छेदक/पत्ती छेदक कीट का प्रकोप दिखाई दे तो इसके नियंत्रण के लिए नीम के तेल को 1.5 मिली/लीटर पानी में घोल बनाकर 8-10 दिन के अंतराल पर 3-4 छिड़काव करें।
•वातावरण में आर्द्रता/बादल एवं तापमान बढ़ने के कारण आलू की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप तेजी से फैलता है, अतः इसकी रोकथाम के लिए बुआई के 25-30 दिन बाद मैन्कोजेब 2.0 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। आलू की फसल में पहली सिंचाई बुआई के 8 -10 दिन बाद करनी चाहिए। आलू की फसल में खरपतवार की रोकथाम के लिए बुआई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें उसके बाद दोबारा जुताई करें। आलू की फसल में कटवर्म कीट का प्रकोप देखने को मिलता है। इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी 2.5 लीटर/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
*पशुपलन*
•मौसम में बदलाव की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने पशुओं को रात के समय खुले में न बांधें तथा रात के समय खिड़कियों व दरवाजों पर जूट की बोरियों के पर्दे लगाएं तथा दिन में धूप में रहने पर पर्दे हटा दें। खुरपका और मुंहपका रोग से बचाव के लिए पशुओं का टीकाकरण कराएं। गर्भवती भैंस/गाय को ढलान वाले स्थान पर न बांधें। गर्भवती भैंस/गाय को पौष्टिक चारा व अनाज खिलाएं तथा नवजात शिशु को तीन दिन तक मिश्री अवश्य खिलाएं। पशुओं को हरे व सूखे चारे के साथ पर्याप्त मात्रा में अनाज दें। पशुओं को दिन में 3-4 बार साफ एवं ताजा पानी अवश्य पिलाना चाहिए। लम्पी वायरस से बचाव के उपाय:- लम्पी रोग से प्रभावित पशुओं को अलग रखें। मक्खी, मच्छर, जूं आदि को मारें। पशु की मृत्यु के बाद शव को खुला न छोड़ें। इस रोग से प्रभावित पशुओं में बकरी चेचक के टीके का प्रयोग डॉक्टर के निर्देश पर किया जा सकता है। प्रभावित पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए मल्टी विटामिन जैसी दवाएं दी जा सकती हैं। इसके साथ ही संक्रमण से बचाव के लिए टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए।
वसीम खान
विषय वस्तु विशेषज्ञ
कृषि मौसम विज्ञान
कृषि विज्ञान केंद्र, फतेहपुर