भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी मौसम पूर्वानुमान के अनुसार आगामी 5 दिनों में फतेहपुर जिले में दिनांक 10 जनवरी को हल्के बादल छाए रहने की संभावना रहेगी। लेकिन इससे बारिश की संभावना नहीं रहेगी। इसके अलावा बाकि दिनों में मौसम साफ रहेगा। अधिकतम तापमान 19.0 से 21.0 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहेगा जबकि न्यूनतम तापमान 7.0 से 9.0 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहेगा। हवा की दिशा अधिकतर उत्तर-पश्चिमी होगी और हवा की गति सामान्य बने रहने की संभावना हैं।
किसानों को यह सलाह दी जाती है कि सरसों, चना, राजमा, मटर आदि फसलों को शीत लहर से बचाने के लिए सल्फ्यूरिक एसिड 0.1% (1 लीटर सल्फ्यूरिक एसिड 1000 लीटर पानी में) की दर से छिड़काव करें। लोगों को गर्म कपड़े पहनाएं और जितना हो सके घर के अंदर रहें, ठंडी हवा से बचने के लिए जितना हो सके कम यात्रा करें और रात के समय जानवरों को जूट की बोरियां पहनाएं और रात के समय खुले स्थानों पर जानवरों को न बांधें।*
फ़सल संबंधित सलाह
गेहूं की फसल में पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिन बाद क्राउन रूट अवस्था में, दूसरी सिंचाई बुआई के 40-45 दिन बाद कल्ले निकलने की अवस्था पर और तीसरी सिंचाई बुआई के 60-65 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करनी चाहिए। जई आने पर दूसरी सिंचाई के बाद एक तिहाई मात्रा की टॉपड्रेसिंग करें। यदि गेहूं की फसल में संकरी और चौड़ी पत्ती वाले दोनों तरह के खरपतवार दिखाई दें तो पहली सिंचाई के बाद उचित नमी होने पर सल्फोसल्फ्यूरान 75% WP 33 ग्राम/हेक्टेयर की दर से या मैट्रीब्यूगिन 70% WP 250 ग्राम/हेक्टेयर की दर से डालें। 500-600 की दर से. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
सरसों की फसल में दूसरी सिंचाई बुआई के 55-65 दिन बाद फूल आने से पहले करनी चाहिए। आसमान में लगातार बादल छाए रहने के कारण सरसों की फसल में माहू कीट लगने की संभावना बढ़ जाती है, अत: इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफॉस 20% ईसी का प्रयोग करें। 1.0 लीटर/हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफॉस 36% एस.एल. 500 मि.ली./हेक्टेयर 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
मटर की फसल में नमी की अधिकता के कारण पत्तियों, तनों और फलियों पर सफेद पाउडर की तरह फैलने वाले डुकल रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर 80% 2 किलोग्राम या ट्राइडेमोर्फ 80% EC 50 मिली/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।
•यदि समय पर बोई गई चने की फसल 15-20 से.मी. तक पहुंच गई हो तो फसल की निपिंग अवश्य करें। चने की फसल में कटवर्म (कैटरपिलर कीट) का प्रकोप होने की संभावना रहती है, इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफोस 50% EC + स्पर्मेथ्रिन 5% EC 2.0 लीटर/हेक्टेयर की दर से 500 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। चने की फसल में निराई-गुड़ाई बुआई के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए।
•प्याज की नर्सरी में डैम्पिंग ऑफ (आर्द्र सड़न) रोग देखने को मिलता है, इसकी रोकथाम के लिए थायरम 2.5 ग्राम या मैकोजेब 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। किसी एक किस्म की नर्सरी के लिए प्याज की प्रजातियों की अनुशंसा करें - कल्याणपुर रेड गोल, पूसा रतनार, एग्रीफाउंड लाइट रेड, एक्स काइलेवर, बरगंडी, केपी, ओरिएंट, रोजी आदि।
•आलू की फसल में अधिक नमी/बादल भरे मौसम तथा तापमान में गिरावट के कारण झुलसा रोग का प्रकोप तेजी से फैलता है, अत: इसकी रोकथाम के लिए बुआई के 25-30 दिन बाद मैंकोजेब 2.0 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। आलू की फसल में कटवर्म कीट का प्रकोप होने की संभावना है, इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी 2.5 लीटर/हेक्टेयर की दर से 500- 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
पशुपलन
•मौसम में बदलाव को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने पशुओं को रात के समय खुले में न बांधें तथा रात के समय खिड़कियों व दरवाजों पर जूट की बोरियों के पर्दे लगाएं तथा दिन में धूप में रहने पर पर्दे हटा दें। खुरपका और मुंहपका रोग से बचाव के लिए पशुओं का टीकाकरण कराएं। गर्भवती भैंस/गाय को ढलान वाले स्थान पर न बांधें। गर्भवती भैंस/गाय को पौष्टिक चारा व अनाज खिलाएं तथा नवजात शिशु को तीन दिन तक मिश्री अवश्य खिलाएं। पशुओं को हरे व सूखे चारे के साथ पर्याप्त मात्रा में अनाज दें। पशुओं को दिन में 3-4 बार साफ एवं ताजा पानी अवश्य पिलाना चाहिए। लम्पी वायरस से बचाव के उपाय:- लम्पी रोग से प्रभावित पशुओं को अलग रखें। मक्खी, मच्छर, जूं आदि को मारें। पशु की मृत्यु के बाद शव को खुला न छोड़ें। इस रोग से प्रभावित पशुओं में बकरी चेचक के टीके का प्रयोग डॉक्टर के निर्देश पर किया जा सकता है। प्रभावित पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए मल्टी विटामिन जैसी दवाएं दी जा सकती हैं। इसके साथ ही संक्रमण से बचाव के लिए टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए।
वसीम खान
विषय वस्तु विशेषज्ञ
कृषि मौसम विज्ञान
कृषि विज्ञान केंद्र, फतेहपुर