फतेहपुर ।आज भास्कर न्यूज।ब्यूरो हेड,अरविंद गुप्ता भारतीय
दधीचि जैसी काया, नब्बे अंश के कोण में झुकी हुई कमर और मात्र एक लंगोटी में सीताराम सीताराम की धुन के बीच दीप प्रज्वलित करते नर्मदा तट के संत सियाराम बाबा गत काफी अरसे से सोशल मीडिया में चर्चित रहे जिनको 11 दिसंबर को परम गति प्राप्त हुई । उनके बारे में रोचक और अब तक अनछुई जानकारी हासिल हुई है और समूचे परिवारिक पृष्ठभूमि से भी पर्दा उठ गया है।
यद्यपि वह गोस्वामी थे, बुजुर्ग भिक्षाटन करते थे और संत जैसी ही वेशभूषा में रहकर दांपत्य जीवन गुजारते थे। सियाराम बाबा का जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के द्वाबा क्षेत्र में बसे जनपद फतेहपुर के एक छोटे से गांव पहुर में है जहां उनकी पत्नी तीन बेटे भी हैं। भाइयों के परिवार बिंदकी कस्बे के मोहल्ला लंका रोड में रहते हैं, जहां सियाराम बाबा द्वारा लाये गए पांच छोटे शिवलिंग सती माता मंदिर में रखे हुए हैं और पूजित हैं। सियाराम बाबा शिवलिंगों को पवित्र और पौराणिक नर्मदा नदी से लाये थे, जहां का हर कंकर शंकर है माना जाता है।
बचपन से ही उनका रुझान अध्यात्म और भक्ति की ओर रहा। उन्होंने संदीपन मुनि आश्रम भरवारी में रहकर प्रारंभिक शिक्षा और फिर मिडिल तक की शिक्षा मुंबई में ली। बिंदकी तहसील के पहुर गांव में पिता रामजियावन के घर जन्म लिया माता रामप्यारी (देवमई) का मंझिला बेटा सियाराम अपने भाइयों जयराम गोस्वामी व जगराम गोस्वामी के साथ बिंदकी-फतेहपुर के लंका केवटरा में जमींदार माधौ सिंह से जमीन खरीदकर घर बनवा रहने लगे लेकिन उन्हें यह मोह माया रास नहीं आई और 1955 में वह बिंदकी छोड़कर निकल गए।
इस दौरान वह कहां-कहां भटके इस बारे में कम ही जानकारी है। लोग कहते हैं कि वह 12 वर्ष तक मौन व्रत धारण किए रहे फिर जब बोले तो सियाराम शब्द ही उनकी वाणी से निकला फिर तो वह रामचरितमानस में डूब से गए और भक्तों के बीच प्रतिष्ठा पाते गए। उन्होंने अपने तीन पुत्रों नारायण एवं पत्नी सबका मोह त्याग दिया ।
भतीजे मदन मोहन गोस्वामी बताते हैं कि उन लोगों को लॉकडाउन के समय भ्रमण में गए देवमई निवासी चंद्र प्रकाश ने बाबा को नर्मदा तट स्थित तेली भटियान जनपद खरगौन मध्य प्रदेश उन्हें देखा और पहचान गए जिन्होंने आकर उनके बारे में बताया तो वह लोग भी तेली भटियांन गए। अपना परिचय लिखकर दिया तो वह मुस्कुराए और नेत्र सजल हो गए। तीन-चार दिन तक वहां रुके और जब लौटने लगे तो सियाराम बाबा खूब रोए। बाबा के एक पुत्र कहते हैं कि सियाराम बाबा गुरु की आज्ञा से ही ग्रहस्थ बने थे, फिर संत बने। पिता जब छोड़कर चले गए तो उनके ही कृपा पात्र सिकठिया निवासी एक भद्र पुरुष ने उनके परिवार की देखरेख की।
सियाराम बाबा के दोनों भाइयों का निधन हो चुका है उनके परिजन बिंदकी के लंका केवटरा में रहते हैं जहां सती मंदिर में उनके लाए हुए शिवलिंगों की पूजा अर्चना नियमित रूप से करते हैं। आम लोगों की 13वीं होती है लेकिन संतों की 17वीं होती है, जिसका आयोजन बिंदकी में उनके मदन मोहन गोस्वामी द्वारा किया गया और भंडारा भी खिलाया गया। भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष मधुराज विश्वकर्मा ने कार्यक्रम में भाग लेने के बाद फेसबुक में जो पोस्ट डाली उससे बिंदकी क्षेत्र के लोगों को इस बारे में जानकारी मिली। बिंदकी के प्रमुख समाजसेवी अनिल गुप्ता चार्ली भी पिछले दिनों सियाराम बाबा का सानिध्य प्राप्त करने के लिए कई लोगों के साथ तेली भटियांन आश्रम गए थे और वहां रुक कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। बहरहाल सियाराम बाबा के आश्रम में श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी पहुंचे और उन्होंने उनकी समाधि स्थल को आकर्षक और विकसित बनाने के लिए भी आश्वासन दिया है।
वरिष्ठ पत्रकार अरुण द्विवेदी की कलम से